जस्टीस चंद्रचूड को चीफ जस्टीस की शपथ से रोकने और उनके खिलाफ कोर्ट अवमानना की कारवाई करने के लिए सुप्रीम कोर्ट मे याचिका दायर।
- ‘इंडियन लॉयर्स अँड हयूमन राईटस एक्टीवीस्टस् असोसिएशन’ के प्रदेश उपाध्यक्ष एम. ए. शेख ने दायर की याचिका।
- याचिकाकर्ता की ओर से सुप्रीम कोर्ट के जाने माने वकील आनंद जोंधळे पैरवी करने वाले है तथा उनके सहयोग के लिए इंडियन लॉयर्स एसोसिएशन के करीब 70 से ज्यादा वकील उपस्थित रहेंगे ऐसी जानकारी है।
- इसके पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने 1993 में जज की शपथ को रोककर उसकी नियुक्ती खारीज की थी।
- जस्टीस चंद्रचूड़ द्वारा अमीरो और सिनिअर वकीलों की याचिका मंजूर कर उसी मामले में जुनिअर वकीलो और गरीब याचिकाकर्ताओं के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार कर उन्हें न्याय देने से मना करने, सुप्रीम कोर्ट के ही आदेशो का अपमान कर व्हॅक्सीन कंपनीयों को हजारो करोड़ गैरकानूनी लाभ पहुचाने वाले संविधानविरोधी आदेश पारीत करने के 12 से अधिक मामलों के सबूत और कोर्ट रिकॉर्डस के साथ यह याचिका दायर की गई है।
- याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के कई आदेशों का हवाला देते हुए बताया की जस्टीस चंद्रचूड़ को जस्टीस कर्णन की तरह कोर्ट अवमानना के मामले में सजा दी जाए और उनके खिलाफ Cr.P.C. की धारा 340, 344 के तहत कारवाई कर CBI को आदेश दिया जाये के वे IPC की विभीन्न धाराओ मे FIR रजिस्टर करे और आगे की कारवाई करे।
- याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका मे कुल 45 विभीन्न प्रार्थनाये की है।
- जस्टीस चंन्द्रचूड द्वारा हालही मे 10 अक्टूबर 2022 को खुद के बेटे से संबंधीत मामले की सुनवाई खुद करने के साथ अन्य कई गुनाहो को उजागर किया है।
दिल्ली
:
जस्टीस चंद्रचूड की मुश्किले रुकने का नाम ही नही ले रही है। अभी रशीद खान पठाण का
मामला ठंडा नही हुआ की अब ‘इंडियन लॉयर्स अँड हयूमन राईटस एक्टीवीस्टस् असोसिएशन’
ने सीधा सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर उनकी CJI की शपथ
रोकने और उनके खिलाफ कोर्ट अवमानना के तहत कारवाई करने की मांग की है।
जस्टीस
चंद्रचूड़ ने अपने बेटे से संबंधीत मामले की सुनवाई कर एकतर्फा आदेश पारीत कर याचिकाकर्ता
को गैरकानूनी लाभ पहुंचाया था। हालाकि यह मामला
11 माह पुराना था. लेकिन जस्टीस चंद्रचूड़ ने फिर एक बार 10 अक्टूबर 2022 को
अपने बेटे के उसी केस से संबंधीत मामले में फिरसे आदेश पारीत करने से वकिल और नागरिक
परेशान हो गये है और उसके नतीजे में यह याचिका दायर की गई है।
एक
ही जैसे मामले में वरीष्ठ वकील और अमीर लोगो को उनके पक्ष में आदेश देना और ज्युनियर
वकिल तथा गरीब लोगो को वैसे ही मामले में अलग आदेश देकर उनके अधिकारों के हनन के 13
मामलो के सबूत देते हुए याचिकाकर्ता ने जस्टीस चंद्रचूड़ पर भेदभावपूर्ण तरीका अपनाकर
भारतीय संविधान के खिलाफ काम करने और जजों द्वारा ली गयी शपथ को तोड़ने का आरोप लगाया।
गौरतलब
हो की सुप्रीम कोर्ट और हाय कोर्ट के हर जज को यह शपथ दिलाई जाती है की वे किसी भी
भेदभाव और पक्षपात के बिना पूर्ण निष्ठा से संविधान व कानून के हिसाब से निष्पक्षता
से न्यायदान करेंगे।
अगर
कोई जज भेदभावपूर्ण तरीके से काम करता है या फिर भारतीय संविधान द्वारा नागरिको को
दिये गये अधिकारों की रक्षा करने में असमर्थ होता है तो उस जज की शपथ भंग हो जाती है
और ऐसे जज को पद से बर्खास्त किया जाना चाहिए ऐसा सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट
किया है। [ S.P.
Gupta v. President of India AIR 1982 SC 149, K.C. Chandy Vs.
R. Balakrishna Pillai AIR 1986 Ker
116, Re: Pollard 1868 LR 2 PC
106,]
जस्टिस
चन्द्रचूड़ के खिलाफ लगाए गए 13 आरोपो का संक्षिप्त विश्लेषण इस प्रकार है:-
1. ज्युनिअर
वकिल और गरीब याचिकाकर्ताओं के साथ भेदभाव :-
1.1. जस्टीस चंद्रचूड़ ने कई बार एक ही मामले में
वरीष्ठ वकीलो को और अमीर लोगो को उनके पक्ष में आदेश और ज्युनिअर वकिल तथा गरीब याचिकाकर्ताओं
को अलग आदेश देकर उनकी याचिका खारीज कर उनके साथ भेदभावपूर्ण तरीके से व्यवहार करके
उन्हें न्याय देने से मना किया और उनकी याचिकाये खारीज की जबकी ऐसे ही मामलों में दुसरे
वरीष्ठ वकीलो तथा अमीर लोगो की याचिकाये मंजूर की गई थी।
1.2.
कानून में स्पष्ट प्रावधान है की, ऐसा भेदभाव करनेवाला जज अपनी शपथ का भंग करता है
और पद पर रहने का अपना अधिकार खो देता है ऐसे जज को बरखास्त करने के लिए महाभियोग की
कारवाई करनी चाहिए तथा उस के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 166, 218, 219, 201, 202 के तहत कानूनी कारवाई
और सजा होनी चाहिए । ऐसा कानूनी प्रावधान सुप्रीम कोर्ट ने खुद अपने कई आदेशों में
दिया है। [S.P. Gupta v. President of India AIR 1982 SC 149,
Justice Nirmal Yadav Vs. C.B.I. 2011 (4) RCR (Criminal) 809),
Shameet Mukherjee Vs. C.B.I. 2003 SCC OnLine Del 821, K. Rama Reddy Vs State 1998 (3) ALD 305, Re: C.S. Karnan (2017)
7 SCC 1, Raman Lal Vs State 2001 Cri.L J
800]
1.3. सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने K.
Veeraswami Vs. Union Of India (1991)
3 SCC 655 मामले में स्पष्ट कानूनी प्रावधान किया है की ऐसे जज को अपनी पद पर बने
रहेने का कोई अधिकार नहीं है और ऐसे जज ने कानूनी प्रक्रिया द्वारा उसे बरखास्त करने के पहले ही अपना इस्तीफा दे देना चाहिए।
1.4.
सुप्रीम कोर्ट की पूर्ण पीठ ने हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जज के खिलाफ की शिकायतों
के बारे में ‘इन- हाऊस- प्रोसीजर’
की प्रक्रिया बताई है जिसके तहत चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को यह अधिकार प्राप्त है की,
वो ऐसे किसी भी आरोपी जज के सारे काम निकाल सकता है और उस जज को त्यागपत्र देने के
लिए कह सकते है। [Additional district & Session Judge ‘x’ (2015) 4
SCC 91]
1.5.
इसी कानून के तहत CJI ने अलाहाबाद हाई कोर्ट के जज शुक्ला और जस्टिस सी. एस. कर्णन
के सारे न्यायिक कामकाज निकल लिए थे। और बाद में जस्टिस शुक्ला के खिलाफ सी. बी. आई.
ने चार्जशीट भी दायर की थी।
Link
i) Shameet Mukherjee Vs. CBI 2003 SCC OnLine Del 821
ii)
Hon’ble Supreme Court withdrawn all works from Justice Shukla of Allahabad High
court and later CBI is investigating the case.
2. जस्टिस चंद्रचूड़ द्वारा अपने वकील बेटे से संविधान केस की सुनवाई खुद करना और पद का दुर्पयोग कर झूठे दस्ताबेजो के आधार पर गैरकानूनी आदेश पारित करना।
2.1. जस्टिस
चंद्रचूड़ के बेटे ॲड. अभिनव चंद्रचूड़ पुणे में दर्ज एक FIR 806/2019, 243 of 2021 से संबंधीत केस में बॉम्बे हाई कोर्ट में कुछ
आरोपियों के तरफ से केस की पैरवी कर रहे थे। [WP
No. 3199/2021]
2.2. उसी केस से संबंधित ॲड अभिनव चंद्रचूड़ के पक्षकारों के ग्रुप की अनीता चव्हाण नामक याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर हाई कोर्ट की सुनवाई तुरंत करवाने की मांग की।
[SLP (Cri.) No. 9131/2021]
Link:
https://drive.google.com/file/d/17Giq3yJQeHmyYS0Lt3yfl8TSEgRz_Vlb/view?usp=sharing
2.3. उस याचिका में यह झूठ कहा गया की सरकार (पुलिस) द्वारा दायर याचिका पर
बॉम्बे
हाय कोर्ट सुनवाई नहीं कर रहा है।
2.4. मामला 27.11.2021 को सुप्रीम कोर्ट दायर किया गया और तुरंत 29.11.21 को सुनवाई के लिए जस्टिस चंद्रचूड़ की बेंच
पर आया. 'जजेस इथीक्स कोड' और सुप्रीम कोर्ट के बनाये गये नियमो के तहत जस्टिस चंद्रचूड़ इस मामले
की सुनवाई नहीं कर सकते थे. उसके दो प्रमुख कारण थे एक उनके बेटे की केस
मे पहली और दूसरा ॲड. निलेश ओझा की केस मे पेशी। ॲड. निलेश ओझा यह 2018 मे जस्टीस चन्द्रचूड़ और उनके बेटे के खिलाफ की केस मे गवाह थे। ऐसे मे जस्टीस चंद्रचूड़ को उस मामले से खुद को
अलग करना बंधनकारक था.[ Punjab
Vs. Davinder Pal Singh Bhullar (2011) 14 SCC 770, Gullapalli
Nageswara Rao vs. A.P. State Road Transport Corpn. 1959 Supp (1) SCR 319,
Mineral Development Ltd. vs. State of Bihar and Anr.
(1960) 2 SCR 609]
2.5. किंतू जस्टीस चंद्रचूड़
ने ना सिर्फ उस मामले को सुना बल्कि मामले के किसी भी प्रतिवादी को ना सुनते हुए
तुरंत उसी दिन झुठे और गैरकानूनी आदेश पारीत किए और
हायकोर्ट को आदेश दिया की सरकार की अर्जी पर सुनवाई ३ महीने मे पूरी की जाए. यह
Maneka Gandhi Vs. Union of India (1978)
1 SCC 248 , Gobind Mehta Vs. State of UP AIR 1971 SC 1708 मामले में बनाये गये नियम का उल्लंघन था।
[order dated: 29.11.2021
Link: https://drive.google.com/file/d/1E-PG_0UJf72Km3V9syYhdW8VDdt0Mb2_/view?usp=sharing
2.6. लेकिन आश्चर्य की बात यह है की सरकार द्वारा ऐसी कोई अर्जी कभी दायर ही नही की गई थी. ना ही ऐसी कोई अर्जी
को जस्टीस चन्द्रचूड़ के समक्ष सुनवाई वाली याचिका मे संलग्न भी नहीं किया गया था ऐसे मे कोई
भी आदेश देने का अधिकार जस्टिस चन्द्रचूड़ को नहीं था.
2.7. बल्कि ऐसे केस में जस्टीस चंद्रचूड़ पर यह जिम्मेदारी थी की , झूठा शपथपत्र देनेवाले याचिकाकर्ता अनिता
चव्हाण और कोर्ट को गुमराह करने वाली उसकी वकिल रेबीका जॉन के खिलाफ CBI को FIR का आदेश देना चाहिए ऐसा कानून सुप्रीम
कोर्ट ने बनाया है. [ Pushpa Devi M. Jatia v. M.L. Wadhawan, (1987) 3 SCC 367,
Sanjeev Kumar Mittal Vs. The State 2011
RCR (CRI) (7) 2111, ABCD v. Union of India, (2020) 2 SCC 52 ]
2.8. लेकिन उन आरोपियो को बचाने और उन्हे अनुचित लाभ पहुचाने के लिए जस्टीस चन्द्रचूड़
ने बिना सरकारी पक्ष को सुने एकतर्फा गैरकानूनी आदेश पारीत कीया जो की खुद सुप्रीम
कोर्ट की संविधान पीठ द्वारा Maneka
Gandhi Vs. Union of India (1978) 1 SCC 248 मामले मे बनाये गए कानून का उल्लंघन और अवमानना है.
2.9.
इस वजह से जस्टीस चन्द्रचूड़ खुद सुप्रीम कोर्ट की और जनता के संसाधनों का दुरूपयोग आरोपियों को मदद करने के लिए करने के मामले में IPC 409, 201, 202, 219, 218, 166, 120 (B),
34, 109, 192, 193, 199, 200 आदी धाराओं के तहत सजा के हकदार है। तथा उन्हें जज
के पद से तुरंत बरखास्त किया जाना चाहिए ऐसा स्पष्ट कानूनी प्रावधान है।[ K. Rama
Reddy Vs State 1998 (3) ALD 305,
Gobind Mehta Vs. State of UP AIR 1971
SC 1708, Raman Lal Vs State 2001
Cri.L J 800, C.S. Karnan, In re,
(2017) 7 SCC 1, Kamlakar Bhawsar 2002 ALL MR (Cri.) 2640, Baradakanta Mishra v. Registrar of Orissa High
Court, (1974) 1 SCC 374, R.R.
Parekh Vs. High Court of Gujrat (2016) 14 SCC 1, Muzaffar
Husain Vs. State of UP 2022 SCC
OnLine SC 567, Shrirang Yadavrao
Waghmare v. State of Maharashtra (2019)
9 SCC 144]
2.10. उपरोक्त
मामले में रशिद खान पठान द्वारा 5 अक्टूबर,
2022 को मा. राष्ट्रपती और मा. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को विधिवत शिकायत दर्ज की
गई थी।
[PRSEC/E/ 2022/30960]
Link: https://drive.google.com/file/d/1pB4REDIFTfUdgDA-bZm2j4VCmsVF7y9a/view?usp=sharing
2.11. लेकिन
उसके बाद भी जस्टिस चंद्रचूड़ ने फिर से 10
अक्टूबर, 2022 को उसके बेटे से संबंधीत मामले की सुनवाई की और आदेश पारीत किया।
[Case No._ Vijaykumar
Gopichand Ramchandani Vs Mr. Amar
Sadhuram Mulchandani bearing SLP (Cri.)
No. 9092 of 2022]
Link: https://drive.google.com/file/d/1eMxBZPLkMGQqA7gXHldjPVymFAa_OJ46/view?usp=sharing
इसकी
वजह से उनपर Aggravated Contempt और अन्य फौजदारी मामलो के तहत कानूनी कारवाई आवश्यक
है।
3. संविधान पीठ द्वारा Common Cause v. Union of India, (2018) 5
SCC 1, K.S. Puttaswamy v.
Union of India, (2017) 10 SCC 1 मामले में बनाये
गए कानून की जानबूझकर अवमानना करना. क्योकि ये दोनो आदेशो मे जस्टिस चन्द्रचूड़ खुद
भी एक जज थे .
3.1.
इन मामलो मे बनाये गये कानून के तहत कोई भी
दवाई (वैक्सीन) लेना या नही लेना यह हर नागरिक का मूलभूत संविधानिक अधिकार है और
देश का कोई भी अधिकारी उस नागरिक को उसके वैक्सीन नहीं लेने की वजह नही पूछ सकता
और उसे दवाई (वैक्सीन) लेने के लिए बाध्य नही कर सकता.
3.2. लेकिन जस्टिस चन्द्रचूड़ ने खुद कई बार इस आदेश की अवमानना कर नागरिको
को प्राप्त नीजता के मुलभूत अधिकार (Right to
Privacy) का भी उल्लंघन किया।
उन्होने
कई मामलों मे नागरिको पर वैक्सीन लेने के बगैर यात्रा और अन्य सुविधा पर प्रतिबंध
लगाने वाले आदेश पर रोक लगाने से मना कर याचिकाकर्ता को वैक्सीन लेने की सलाह दे
डाली और उनपर
दबाव बनाया तथा वैक्सीन नही लेने का कारण उजागर करने को कहा।
3.3. भारत
सरकार की कोव्हीड वैक्सीन की गाईडलाईन में और उनके शपथपत्र में और रिपोर्ट में यह स्पष्ट
किया गया है कि, कोरोना वैक्सीन के जानलेवा दुष्परीणाम है और इससे लोगो की जान भी जा
सकती है। इसलिए किसी भी व्यक्ती को उसकी मर्जी
के बगैर वैक्सीन न दिया जाये। तथा जिन लोगो
को वैक्सीन की या किसी भी खाने के चीजों की एलर्जी है उन्हें भी वैक्सीन न दिया जाये। वैक्सीन मर्डर केस में केरला, बॉम्बे हाय कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने सरकार, बिल गेट्स , अदार पूनावाला
आदी को नोटीस जारीकर सभी मृतको के परिवार को तुरंत नुकसान भरपाई देनेसंबंधी मामले आदेश
और निर्देश जारी किये है। [Dilip Lunawat
v. Serum Institute of India (P) Ltd., 2022
SCC OnLine Bom 1773, Rachna Gangu Vs. Union of India 2022 SCC OnLine SC 1125, Sayeeda
Vs. Union of India 2022 SCC OnLine
Ker 4514]
3.4. सुप्रीम
कोर्ट ने खुद Jacob Puliyel v. Union of India, 2022 SCC OnLine SC 533 मामले में स्पष्ट आदेश दिया की, वैक्सीन
लेने वाले भी कोरोना से संक्रमीत होकर कोरोना फैला सकते है। इसलिए वैक्सीन नहीं लेनेवाले
लोगो की कोई भी सुविधा रोकना तर्कहीन और असंवैधानिक है।
3.5. लेकिन
जस्टीस चंद्रचूड़ ने इन सभी तत्थ्यो और क़ानूनी प्रावधान तथा संवैधानिक अधिकारों की धज्जिया
उड़ाते हुए लोगो को जबरदस्ती वैक्सीन लेने पर मजबूर किया और सुप्रीम कोर्ट की मशीनरी
का दुरूपयोग वैक्सीन कंपनियों को हजारो करोड़ का अनुचित लाभ पहुंचाने के लिए किया। यह
IPC 409, 166, 219 के तहत दंडनीय
अपराध है।
3.6. सुप्रीम
कोर्ट ने खुद सभी जजेस को चेतावनी दी थी की स्वास्थ संबंधी मामलो में जज अपने मन से
कोई भी सलाह या निर्देश ना दे और केवल कानून के दायरे में रहकर विशेषज्ञों की सलाह
के आधारपर ही निर्णय दे। [Academy of Nutrition Improvement v. Union of India, (2011) 8 SCC 274]
3.7. किन्तु
जस्टीस चंद्रचूड़ ने उस आदेश की अवमानना कर वैक्सीन के जानलेवा दुष्परीणाम पता होते
हुए भी वे छुपाकर लोगो को वैक्सीन लेने की सलाह और जबरदस्ती कर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों
की अवमानना की तथा नागरिको के मूलभूत अधिकारों का हनन कर उनकी जान को धोखे में डाला। तथा मुख्य आरोपीयों को बचाने का प्रयास किया इसलिए
उनके खिलाफ IPC 52, 166, 115, 304-A, 219, 218, 201, 202, 120(B), 109, 34 आदी धाराओं
के तहत क़ानूनी कारवाई की मांग की गई है।
3.8. जो जज कानून और केस के तत्थ्यो को छोड़कर बाहरी
दबाव या भ्रष्टाचार की वजह से या वरीष्ठ वकीलों को अनुचित लाभ पहुंचाने के लिए अगर
कोई आदेश पारीत करता है तो उस जज को तुरंत बरखास्त किया जाना चाहिये या उसका तबादला
कर देना चाहिए ऐसा कानून खुद सुप्रीम कोर्ट ने ही बनाया है। [Shrirang
Yadavrao Waghmare v. State of Maharashtra (2019)
9 SCC 144, R.R.
Parekh Vs. High Court of Gujrat (2016)
14 SCC 1,
Muzaffar Husain Vs. State of UP 2022 SCC OnLine SC 567, Re:
Pollard 1868 LR 2 PC 106, Umesh
Chandra Vs State of Uttar Pradesh 2006
(5) AWC 4519, Prabha Sharma v. Sunil Goyal, (2017) 11 SCC 77]
ऐसे
व्यक्ती को पुरे देश की न्यायव्यवस्था का प्रमुख याने चीफ जस्टीस ऑफ़ इंडिया नहीं बनाया
जा सकता। [ Re: Pollard
1868 LR 2 PC 106]
जो
भी न्यायधीश भ्रष्टाचार करके या अन्य कारनो से केस के सबूतों से छेड़छाड़ करना या झूठी
बाते गठकर अपने पद का दुरूपयोग करके किसी पक्षकार को अनुचित लाभ या अनुचित हानि पहुंचाने
वाले आदेश पारीत करते है, तो ऐसे जजों को सजा देने का स्पष्ट प्रावधान भारतीय दंड संहिता
में किया गया है। IPC Sec. 166, 218, 219, 220, 211, 191, 192,
193, 465, 466, 471, 474, 409, 500, 501, 504 आदी धाराओं में संबंधीत जजों के खिलाफ
कारवाई हुई है। उसमे जजको 7 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास की सजा हो सकती है। [Gobind Mehta Vs. State of UP AIR 1971 SC 1708 , K. Rama Reddy
Vs State 1998 (3) ALD 305,
Raman Lal Vs State 2001 Cri.L J 800,
Shameet Mukherjee Vs. C.B.I. (2003)
70 DRJ 327, Jagat Jagdishchandra Pate Vs. State of Gujrat 2016 SCC OnLine Guj 4517,
Kamlakar Bhawsar 2002 ALL MR
(Cri.) 2640, Deelip Bhikaji Sonawane Vs. State 2003 (1)B.Cr.C. 727, Vijay Shekhar (2004) 4 SCC 666, Ajit D. Padiwal v.
State of Gujarat, 2004 SCC OnLine Guj 599, B. S. Shambhu
versus T.S. Krishnaswamy AIR 1983 SC 64, Bidhi
Singh Vs. M.S. Mandyal 1993 Cri. L.J.
499]
कई
मामले मे जजेस के खिलाफ बिना किसी पुर्वनुमाती के भी केसेस दायर करके F.I.R
और अन्य कारवाई हो सकती है. जजेस प्रोटेक्शन act 1985 की धारा 3(2) तथा Cr.P.C. की धारा156 (3) , 340, 344 के तहत मजिस्ट्रेट सेशन कोर्ट, हाय कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट या सरकार कारवाई कर
सकती है [Deelip Bhikaji Sonawane Vs. State 2003 (1)B.Cr.C. 727, K.
Ram Reddy Vs. State of A.P. 1997 SCC OnLine AP 1210,
Govind Mehta Vs. State of Bihar (1971) 3 SCC
329, Raman Lal Vs. State 2001 Cr L J 800]
अगर
कोई जज सुप्रीम कोर्ट और हाय कोर्ट द्वारा बनाये गए बाध्य कानून (binding
जजमेंट) के खिलाफ जाकर कोई गैरकानूनी आदेश पारीत करता है और उस
कानून को मानने से इनकार करने का कोई वैध कारण नही देता है, तो ऐसे सभी जजो को
कोर्ट अवमानना कानून 1971 की धारा 2(b),(c), 12,16 और भारतीय संविधान की धारा 129, 142, 215 के तहत 6 माह के कारावास की सजा हो सकती है. तथा उन्हे अनुशासनात्मक कारवाई
चलाकर पद से बर्खास्त भी किया जा सकता है. [ C.S. Karnan, In re, (2017) 7 SCC 1, Baradakanta
Mishra v. Registrar of Orissa High Court, (1974) 1 SCC 374,
Yogesh Waman Athavale v. Vikram Abasaheb Jadhav, 2020 SCC OnLine Bom 3443,
Prabha Sharma v. Sunil Goyal, (2017) 11 SCC 77,
Subrata Roy Sahara v. Union of India (2014)
8 SCC 470, New Delhi Municipal Council Vs. M/S Prominent Hotels Limited
2015 SCC Online Del 1191, M/s. Spencer & Co. Ltd. Vs. M/s Vishwadarshan
Distributors (1995) 1 SCC 259, State Vs. Rabindranath Singh, (2010) 6 SCC 417,
State Of Maharashtra Vs. R. A. Khan 1992
SCC OnLine Bom 368 ]
इन
सभी कानूनो के आधारपर जस्टीस चन्द्रचूड़ के खिलाफ सबूतो के साथ 13 गंभीर आरोप लगाते
हुए याचिकाकर्ता ने उनपर कारवाई करने की मांग की है.
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