कोरोना स्कॅंडल में महाराष्ट्र सरकार को झटका मास्क का वसूला २०० करोड़ रु. से अधिक का जुर्माना लौटाने और आरोपी मंत्रियों, अधिकारीयों के खिलाफ केस दर्ज करने के मुद्दों पर जबाब दाखिल करने का हाय कोर्ट का आदेश.

मास्क का वसूला २०० करोड़ रु. से अधिक का जुर्माना लौटाने और आरोपी मंत्रियों, अधिकारीयों के खिलाफ केस दर्ज करने के मुद्दों पर जबाब दाखिल करने का हाय कोर्ट का आदेश.

  • टीका कंपनियों को हजारो करोडो का फायदा पहुचाने के लिए टीके के जानलेवा दुष्परिणामों को छुपाकर और जरुरत रहते हुए नैसर्गिक प्रतिकार क्षमता वाले लोगो का टीकाकरण कर देश की संपत्ति का हजारो करोड़ का नुकसान और जनता की जान धोके में डालनेवाले निर्णय की गलत सलाह देनेवाले टास्क फोर्स सदस्यों, अधिकारीयों और मंत्रियों के खिलाफ IPC 409, 420 आदी धाराओं के तहत FIR दर्ज करने संबंधी मुद्दों पर भी देना होगा जबाब।
  • याचिकाकर्ता को 5 करोड़ रूपये मुआवजा देने के बारे में सरकार का कोई आक्षेप नहीं।
  • अन्य चिकीत्सा पद्धतियों का इलाज टीके से भी कई गुना ज्यादा प्रभावी और दुष्परिणाम विरहित होते हुए भी जानलेवा दुष्परिणाम और कम प्रभावी टीके की सलाह देने के आरोपो की जांच पर सभी को देना होगा जबाब।
  • कोरोना के निर्बंधो और लाकडाउन के वजह से होनेवाले आर्थिक नुकसान का मुआवजा क्यों नहीं दिया इस पर सरकार को देना होगा जबाब। 

मुंबई :- इस मामले में अव्हेकन इंडिया मुव्हमेंट के श्री. फिरोझ मिठीबोरवाला और सोहन अगाटे ने मुंबई हाय कोर्ट में याचिका दायर की है। 

हाय कोर्ट के कडे रुख के बाद केंद्र और राज्य सरकार दोनों ने आप्पत्ति निवारण कानून के तहत पारीत सभी प्रतिबंध वापस ले लिए है। 

अब मॉल, स्कूल, कॉलेज ट्रेन कही पर भी कोव्हीड टीके का प्रमाणपत्र नही मांगा जा रहा है और मास्क लगाने की पाबंदी भी हटा दी गई है।

जब 5 एप्रिल 2022 को मामले की सुनवाई हुई तब याचिकाकर्ता के वकिल ॲड. निलेश ओझा ने कोर्ट को बताया की डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट (Disaster Management Act) में सरकार के किसी अधिकारी, पुलिस या क्लीन अप मार्शल को मास्क ना पहनने पर फाईन (Fine) वसूलने का अधिकार नहीं है। इसलिए गैरकानूनी तरीके से वसूला गया फाईन लौटाया जाए।

ऐसा ही आदेश सर्वोच्च न्यायालय ने Parwaiz Arif Titu Vs. State of Uttar Pradesh 2022 SCC OnLine SC 347 केस में किया है।

कोर्ट ने मामले की सुनवाई को 11 जुलाई 2022 को रखा और सरकार से सभी मुद्दों पर जबाब दायर करने को कहा।

याचिकाकर्ता की मांगे इस प्रकार है।

  • a) यह घोषित करे की १ मार्च, २०२२ का आक्षेपित आदेश या अन्य कोई आदेश, परिपत्र, एसओपी और अधिसूचनाएं जो टीकाकृत और टीकारहित के बीच भेदभाव को बढ़ावा देती हैं, ऐसे सभी आदेश अवैध हैं और भारतीय संविधान के अनुछेद १४, १९ और २१ के तहत अनिवार्य नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती हैं अतएव ऐसे सभी आदेशों को रद्द किया जाए;

    b) यह घोषित करें की किसी को किसी उपचार या औषधि लेने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता हैजैसा की कॉमन कॉज बनाम यूओआई (2018) 5 एससीसी 1 के मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित किया गया है। यह राज्य सरकार का अपना नीतिगत निर्णय है कि टीकाकरण अनिवार्य नहीं है और किसी को भी उनकी इच्छा के विरुद्ध टीका लेने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। इसलिए टीकाकरण के अप्रत्यक्ष तरीकों को अपनाकर टीकाकरण अनिवार्य करना गलत है और कुछ सुविधाओं और सेवाओं का लाभ उठाने के लिए टीकाकरण प्रमाणपत्र की शर्तें माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नोएडा एंटरप्रेन्योर एसोसिएशन बनाम नोएडा (2011) 6 एससीसी ५०८ मामले में निर्धारित कानून के तहत गैरकानूनी है। 

    c) यह घोषित करें की रिकॉर्ड पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार और आईसीएमआर द्वारा दिये गए उत्तर तथा केंद्र और राज्य सरकार के नीतिगत निर्णय के अनुसार यह स्पष्ट है की ऐसा कोई प्रमाण नहीं है जिसके आधार पर ये कहा जा सके की टीकाकृत लोग सुरक्षित हैं और संक्रमण नहीं फैला सकते। इस संबंध में टीकाकृत और टीकारहित लोगों के बीच कोई अंतर नहीं है और इसलिए टीकारहित लोगों पर लगाया गया प्रतिबंध कानूनी रूप से स्वीकार्य साक्ष्य या बुद्धिमान अंतर पर आधारित नहीं है। इसलिए ऐसे आदेश भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के अधिकारातीत और उल्लंघनकारी हैं;

    d) यह घोषित करें की प्रतिवादी संख्या ३, श्री असीम गुप्ता, प्रतिवादी संख्या १९, श्री उद्धव ठाकरे, मुख्यमंत्री महाराष्ट्र राज्य और अधिकारीयों ने WHO के निर्देशों के बावजूद पिछले संक्रमण वाले लोगों की स्थिति पर या एंटीबॉडी विकसित कर चुके लोग जो प्रतिरक्षा विक्सित कर चुके हैं और सुरक्षित हैं उनकी स्थिति पर विचार नहीं कर रहे हैं | विभिन्न वैज्ञानिकों जैसे एम्स के विशेषज्ञ और विभिन्न साथियों द्वारा विद्वतापूर्ण शोध पत्र की समीक्षा और स्टर्लिंग प्रकृति के अन्य साक्ष्य भी साबित करते हैं कि उत्तरदाता सरकारी खजाने को हजारों करोड़ का नुकसान पहुंचा रहे हैं और वैक्सीन कंपनियों को हजारों करोड़ का गलत लाभ दे रहे हैं। इसलिए उन पर भारतीय दंड संहिता की धारा 409,52, 120(बी), 34 आदि के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है और सीबीआई को इस याचिका को प्राथमिकी मानकर मामले की जांच करने का निर्देश दिया जाना चाहिए जैसा कि नोएडा एंटरप्रेन्योर्स एसोसिएशन बनाम नोएडा (2011) 6 एससीसी 508 के मामले में किया गया था।

    e) याचिका में अंतिम निर्णय तक दिनांक 01.03.2022 के आक्षेपित आदेश में अवैध निर्देशों पर रोक लगाने की अंतरिम विज्ञापन-अंतरिम राहत प्रदान करें।

    f) प्रतिवादी राज्य को टास्क फोर्स के सदस्यों की सूची, उनकी योग्यता और डोमेन विशेषज्ञों जैसे कि महामारी विशेषज्ञ और वैक्सीन विशेषज्ञ जैसे प्रतिवादी संख्या 10 डॉ। संजीव राय एम्स, नई दिल्ली, डॉ अरविंद कुशवाहा, एम्स नागपुर प्रतिवादी संख्या 11 और अन्य की सलाह लेने के कारण देने का निर्देश दें।

    g) यह घोषित करें की इस माननीय न्यायालय द्वारा पारित आदेश 2 मार्च, 2022 (प्रदर्शन - "I") के मद्देनजर यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता के मौलिक संवैधानिक अधिकारों का राज्य द्वारा प्रतिवादी संख्या 20 श्री. सीताराम कुंटे द्वारा पारित किये गए गैरकानूनी जनादेश को क्रियान्वित करके उल्लंघन किया गया है जिसके चलते याचिकाकर्ता कई महीनों से परेशान है। इसलिए राज्य द्वारा याचिकाकर्ता को रुपये 5 करोड़ का अंतरिम मुआवजा का भुगतान तुरंत किया जाए और उसके पश्चात यह रकम प्रतिवादी संख्या 20 सीताराम कुंटे सहित उन दोषी अधिकारियों से वसूल किया जाए जो अपने कृत्य और चूक के चलते ऐसे उल्लंघन के लिए जिम्मेदार हैं। जैसा कि वीना सिप्पी बनाम. श्री नारायण डुम्ब्रे & अन्य. 2012 एससीसी ऑनलाइन बॉम 339 के मामले में निर्धारित किया गया है।

    h) राज्य और केंद्र सरकार के प्राधिकारियों को निर्देश दें कि वे विभिन्न डॉक्टरों को उनके द्वारा दिए गए मृत्यु के कारण और उनके द्वारा दिए गए अन्य दुष्प्रभावों सहित निर्देशों के विवरण का सटीक पाठ प्रस्तुत करें, जिसे उस व्यक्ति को बताया जाना है जिससे टीके देने के लिए सूचित सहमति प्राप्त किये जा रहे हैं। जैसा कि केंद्र सरकार द्वारा जारी किए गए कोविड टीकाकरण दिशानिर्देशों में दिया गया है और उनके शपथ पत्र दिनांक 13.01.2022 में प्रस्तुत किया गया है।

    i) राज्य और केंद्र सरकार के अधिकारियों को सूचित सहमति के कानून और मोंटगोमरी [2015] यूकेएससी 11, मास्टर हरिदान कुमार बनाम यूनियन ऑफ इंडिया 2019 एससीसी ऑनलाइन डेल 11929, रजिस्ट्रार जनरल, मेघालय उच्च न्यायालय बनाम। मेघालय राज्य 2021 एससीसी ऑनलाइन मेघ १३० के मामलों में निर्धारित कानून के अनुसार अक्षरश: पालन करने के लिए निर्देशित करें। 

    J) यह घोषित करें की आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 या महामारी रोग अधिनियम, 1897 के प्रावधानों के अनुसार किसी भी नागरिक द्वारा कोई जुर्माना देने का कोई प्रावधान नहीं है और इसलिए राज्य में प्रतिवादी संख्या 19 श्री सीताराम कुंटे द्वारा पारित किया गया दिनांकित 27.11.2021 का आदेश और श्री. इकबाल चहल (प्रतिवादी संख्या 20), श्री सुरेश काकानी (प्रतिवादी संख्या 21) के आदेश दिनांक 18.02.2021, 19.02.2021 के अवैध आदेश के आधार पर किसी भी प्राधिकरण या पुलिस अधिकारी द्वारा वसूल किया गया कोई भी जुर्माना जबरन वसूली और सार्वजनिक संपत्ति तथा मशीनरी की हेराफेरी का अपराध है | इसलिए सभी आरोपी अधिकारियों पर आईपीसी के धारा 52, 109, 384, 385, 420, 409, 511, 341, 342, 120 (बी), 32 आदि  के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है और क्योंकि एक आरोपी श्री. उद्धव ठाकरे (प्रतिवादी संख्या 19) राज्य के मुख्यमंत्री हैं इसलिए जयश्री पाटिल बनाम महाराष्ट्र राज्य 2021 एससीसी ऑनलाइन बॉम 516 में निर्धारित कानून के मद्देनजर जांच सीबीआई को सौंपे जाने योग्य है। 

    k) राज्य के प्राधिकारियों को उनके द्वारा गैरकानूनी जनादेश के आधार पर सभी नागरिकों से एकत्र किया गया जुर्माना वापस करने और प्रतिवादी संख्या 20 श्री इकबाल चहल और प्रतिवादी संख्या 21 सुरेश काकानी द्वारा सफाई मार्शलों को दिए गए 50% कमीशन की राशि की वसूली करने के लिए निर्देशित करें। 

    l) राज्य के अधिकारियों से और विशेष रूप से प्रतिवादी संख्या 20 इकबाल चहल और प्रतिवादी संख्या 21 श्री सुरेश काकानी से क्लीनअप मार्शल के खिलाफ एफआईआर दर्ज न करने पर स्पष्टीकरण माँगा जाये।  विशेषतः तब जबकि उनकी जबरन वसूली का खुलासा प्रमुख अंग्रेजी दैनिक "मिड-डे" द्वारा किया गया है और यह घोषित करें कि उनके कमीशन और चूक का कार्य आईपीसी की धारा 218, 201, 202, 204 आदि के तहत अपराध है। जैसा कि ओडिशा राज्य बनाम प्रतिमा मोहंती 2021 एससीसी ऑनलाइन 1222 के मामले में शासित किया गया है।

    m) ऐसे अन्य आदेश और आगे के आदेश पारित करने के लिए जो तथ्यों पर और मामले की परिस्थितियों में आवश्यक समझे जा सकते हैं।

Comments

  1. ye ladai ladane wale
    yodhavo ka dil se aabhar satyamev jayte

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