[ब्रेकिंग] अव्हेकन इंडिया मुव्हमेंट (AIM) और इंडियन बार असोसिएशन (IBA) को और एक बड़ी सफलता। हाय कोर्ट की फटकार के बाद महाराष्ट्र में व्हॅक्सीन और कोरोना के सारे निर्बंध हटाने का सरकार का निर्णय।

  • मॉल, ट्रैन, स्कूल, कॉलेज, सरकारी कार्यालयों सहित सभी जगहों से व्हॅक्सीन की पाबंदी हटेगी।
  • देश के कई राज्य पंजाब, हरयाणा, दिल्ली, यूपी और विदेशों में यूरोप, अमेरीका सहित कई देशों ने भी हटाये निर्बंध।
  • अब नही लगेगा लॉकडाऊन।
  • याचिकाकर्ता के कई आरोपों के खिलाफ सरकार के पास कोई जबाब नहीं।
  • कोरोना की मोबाइल की कॉलर ट्यून भी बंद करने का निर्णय।
  • कोरोना के नियम तोड़नेवालों के खिलाफ के सारे केस वापस लेने का आदेश।
  • मास्क ना लगाने पर वसूला गया जुर्माना लौटाने और जुर्माना लेने वाले अधिकारियों और मुख्यमंत्री को जेल भेजने की याचिका पर मुंबई हाय कोर्ट में सुनवाई 5 एप्रिल को है।
  • व्हॅक्सीन कंपनियों को हजारों करोड़ो रुपये का फायदा पहुंचाने के लिए नॅचरल इम्यूनीटी वाले लोगों को व्हॅक्सीन देकर जनता के पैसों का दुरुपयोग करनेवाले और आम आदमी की जिंदगी खतरे में डालने वाले अधिकारी, टास्क फोर्स सदस्य और मंत्रियो के खिलाफ आईपीसी की धारा 409, 120 (B) आदि उम्रकैद के सजा वाली धाराओं में कारवाई पर निर्णय के लिए मामला मुंबई हाय कोर्ट में प्रलंबित।
  • सभी की निगाहे 5 एप्रिल 2022 की सुनवाई पर है।
  • मास्क लगाना अवैज्ञानिक और जानलेवा होने के बारे में याचिकाकर्ता ने पेश किये विश्वप्रसिद्ध डॉक्टर्स के शोधपत्र। सरकार के पास कोई जवाब नहीं। 

मुंबई: मुंबई हाय कोर्ट की फटकार के बाद कोर्ट को दिये अपने आश्वासन के अनुरुप महाराष्ट्र सरकार ने कोरोना के सारे निर्बंध वापस लेने का निर्णय लिया है साथ में निर्बंध तोड़नेवाले के खिलाफ दायर 10,000 केसेस भी सरकार वापस लेने जा रही है।

सरकार के ट्रेन, मॉल्स या अन्य जगहों पर व्हॅक्सीन का प्रमाणपत्र दिखाने के निर्णय को हाय कोर्ट पहले ही गैरकानूनी और असंवैधानिक घोषित कर चुका है।

यह याचिका अव्हेकन इंडिया मुव्हमेंट के फिरोझ मिठीबोरवाला, सोहन आगाटे और योहान टेंगरा ने दायर की थी। 

याचिकाकर्ता ने अपनी 571 पेज की याचिका ने केन्द्र सरकार के खुद के रिकॉर्ड और विश्वप्रसिद्ध एक्सपर्ट की रिपोर्ट के आधारपर कोर्ट की नजर में लाया की :

(i)       मास्क अवैज्ञानिक है। इससे कोरोना से कोई बचाव नहीं होता है लेकिन इसके पहनने से शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है जिससे कोरोना और अन्य बिमारीयो के खिलाफ लड़ने की शक्ती कम होती है और उससे कोरोना होने का और मौत का खतरा कई गुना बढ़ जाता है और अन्य कई बिमारीया हो जाती है।

(ii)     अमेरीकी संसद ने फरवरी 2022 को मास्क को अवैज्ञानिक करार देते हुये मास्क के निर्बंध हटाने का कानून पारीत किया है।

(iii)    टीका (Vaccine) के संबंध में कोर्ट में याचिकाकर्ता द्वारा दिये गये सबूत:-

(a)      कोरोना का टीका (Vaccine) लेने से कोरोना ना होने की कोई गॅरंटी नहीं है बल्कि टीका लेने वाले लोगों को कोरोना होने का और उनकी जान जाने का ज्यादा खतरा है।

(b)     महाराष्ट्र के औरंगाबाद की 32 वर्षीय डॉ. स्नेहल लुणावत की मौत कोव्हीशील्ड टीका (Covishield Vaccine) से होने की बात को सरकार की AEFI समीती ने माना  है।

Link:-https://www.lokmat.com/nashik/death-female-doctor-after-vaccination-a587/

(c)      कोरोना का टीका कतई सुरक्षित नहीं है और उसके दुष्परिणाम से कई लोगों की मौत हुई है तथा कई लोगों को लकवा, पैरालिसिस, अंधापन, बहरापन, मस्तिष्क संबंधी (Neurological) बीमारी, दिल के दौरे पड़ना आदि कई बीमारियां हुई है और उनकी जिंदगी नर्क बन कर रह गई है।

(d)     कोरोना के कोवीशिल्ड या अन्य टीका (vaccine) लेने की वजह से होने वाली मौतें और जानलेवा दुष्परिणामों की बढ़ती तादाद के मद्देनजर 'विश्व स्वास्थ्य संगठन' (WHO) ने लोगों से अपील की है किकोवीशिल्ड टीका लेने वालों को Guillain Barre Syndrome (GBS) नामक बीमारी का खतरा है और टीका लेने वाले लोग सावधानी बरतें।

कोवीशिल्ड लेने से उत्पन्न GBS नामक बीमारी में शरीर को, मुँह को लकवा मार जाता है।

Link:-https://www.who.int/news/item/26-07-2021-statement-of-the-who-gacvs-covid-19-subcommittee-on-gbs

(e)      कॅनडा के सरकारी आरोग्य विभाग ने कोवीशिल्ड (Astrazenneca) टीके से Autoimmune Disorder के रक्त संबंधी गंभीर जानलेवा दुष्परीणामों के प्रति जनता को आगाह किया है:

Link:https://globalnews.ca/news/8362363/astrazeneca-covid-vaccine-autoimmune-disorder-health-canada-update/

(f)      ‘कोवीशिल्ड’ (Astrazeneca) टीका लेने से खून की गुठलीया होकर बच्चों और युवाओं की मौत होने के मामले बढ़ने की वजह से 16 यूरोपियन देशों ने मार्च 2021 में कोवीशिल्ड (Astrazeneca) पर रोक लगा दी थी।

(g)      अक्टूबर 2021 को स्वीडन, डेनमार्क फिनलैंड आदि यूरोपियन देशों ने टीका लेने की वजह से युवाओं में दिल के संबंधित गंभीर बीमारियां (Cardiovascular) होने की बात को गंभीरता से लेते हुए युवाओं को वह टिका देने पर पाबंदी लगा दी।

(iv)     कोरोना के निर्बंध मानने पर पुलीस या अन्य किसी भी अधिकारी को जुर्माना वसूलने का कोई अधिकार आपत्ती निवारण कानून, 2005 और महामारी अधिनियम, 1897 में नहीं है। इसलिए नागरिको से अवैध रूप से वसूला गया सारा जुर्माना उन्हें नुकसान भरपाई के साथ वापिस करने का आदेश दिया जाए।

(a)      ओमायक्रॉन और नॅचरल इम्यूनीटी पर सरकार और टास्क फोर्स मेंबर्स द्वारा जनता को गुमराह करना और डराना। जिन लोगो को एक बार कोरोना होकर गया है या कोविड-19 के विषाणू के संपर्क में आने की वजह से जिन लोगो के शरीर में प्रतिकार शक्ती (Antibodies) तैयार हो गई है वे लोग टीका (vaccine) लेने वालो से 2700% अधिक सुरक्षित है ऐसा 138 Research Paper में पाया गया है। इसे Natural Immunity कहते है। और यही बात देश के महामारी विशेषज्ञ जैसे AIIMS दिल्ली के डॉ. संजीव राय, पुणे के D.Y. Patil युनिव्हर्सिटी के विशेषज्ञ डॉ. अमितव बॅनर्जी, JNU के डॉ. गोवर्धन दास, AIIMS नागपूर के डॉ. अरविंद कुशवाह ने कही है।

डॉ. अरविंद कुशवाह ने मुंबई हाय कोर्ट में कोर्ट के आदेश पर शपथपत्र भी दायर किया है।

(b)     इसके अलावा ऐसे सुरक्षित लोगो को टीका देना यह उनकी जान धोखे में डालने का काम है और यह देश के हजारो करोड़ रूपये की संपत्ती का दुरूपयोग है। टीका कंपनियों को गैरकानूनी लाभ पहुंचाने लिये  ऐसा गलत निर्णय लेनेवाले दोषी अधिकारी, टास्क फोर्स मेंबर्स और मुख्यमंत्री के खिलाफ IPC 409, 304 A, 120 (B), 34, 52, 109 आदी धाराओ के तहत केस दर्ज कर कारवाई के आदेश सी. बी. आय. को देना जरुरी है। ऐसा कानून सुप्रीम कोर्ट ने Noida Entrepreneurs Association Vs. Noida and others (2011) 6 SCC 508 मामलो मे और बॉम्बे हाय कोर्ट ने Jaishri Patil Vs. State of Maharashtra (2021) 8 SCC 1 मामलो मे बताया है। उस आदेश की वजहसे महाराष्ट्र के पूर्व मुख्य मंत्री अनिल देशमुख अभी जेल मे है।  

(c)      इससे यह बात साफ है की सरकारी अधिकारी, टास्क फोर्स मेबंर्स और मंत्रीयो को जनता के स्वास्थ से कोई लेन देन नही है बल्कि उन्होंने केवल टिका कंपनीयो का फायदा पहुचाने वाले निर्णय लिये है और लोगों को बेवकूफ बनाया है। उन्होंने जनता को डराया, गुमराह किया। बल्कि देश और दुनिया के ईमानदार विशेषज्ञो ने पहले ही कह दिया था की ओमायक्रॉन यह एक नॅचरल व्हॅक्सीन की तरह काम करेंगा और कोरोना महामारी को खतम कर देगा और सभी ने देखा की ईमानदार विशेषज्ञो की सभी बात सही साबित हुई तथा भ्रष्ट अधिकारी, टास्क फोर्स मेबंर्स और मंत्रीयो की सारी बात झूठ साबित हुई।

(d)     ऐसे भ्रष्ट लोगों को देश की करोडो जनता के स्वास्थ के बारे मे निर्णय लेने का कोई अधिकार नही है। ऐसे झूठे और भ्रष्ट लोगो की सलाह के आधारपर नागरिको के अधिकार के साथ खिलवाड नही किया जा सकता। उन्हे आम आदमी का रोजगार छीनने का अधिकार नही है। ऐसे लोगो के निर्णयो को तुरंत खारीज कर देना चाहीए और उनको जेल भेज देना चाहिए।

(v)      मुंबई मे महापालिका द्वारा नियुक्त मार्शल द्वारा आम आदमी को डरा धमकाकर की जा रही अवैध वसूली को 'मिड-डे' समाचार पत्र के पत्रकार ने स्टींग ऑपरेशन मे उजागर किया तब मुंबई महापालिका आयुक्त इकबाल चहल और अवर आयुक्त सुरेश काकाणी ने दोषीयो के खिलाफ कोई कारवाई नही की और आरोपियो को बचाने का प्रयास किया इसलिये उनके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के आदेश State of Odisha Vs. Pratima Mohanty 2021 SCC OnLine SC 1222 के नुसार IPC की धारा 201, 202, 218, 120(B), 34 आदी धाराओ के तहत करवाई की जाए।

(vi)     किसी भी व्यक्ती को टीका (Vaccine) लगाने से होनेवाले दुष्परिणामो को बताने की जिम्मेदारी सरकार और टीका देनेवाले डॉक्टर्स की है।

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट और हाय कोर्ट में दायर अपने शपथपत्र में कहा है की सभी टीका लेनेवाले व्यक्ति को यह जानकारी देकर उसके मर्जी के बाद ही उससे लिखीत में Consent लेकर ही टीका दिया जा रहा है। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है इसलिए राज्य और केंद्र सरकार इस संबंध के सभी दस्तावेज कोर्ट के सामने पेश करे और वे सभी पत्र व्यवहार पेश करे जिसमे इस बारे में सभी डॉक्टर्स को निर्देश दिये गये थे।

(vii)   Indian Council of Medical Research (ICMR), World Health Organization (WHO) और विश्वप्रसिध्द सभी वैज्ञानिकों ने माना की लॉकडाऊन या सोशल डिस्टेंसिंग से कोरोना रुकने का कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। महामारी अधिनियम, 1897 में धारा 2 (Section 2 of Epidemic Diseases Act, 1897) में प्रावधान है की अगर सरकार लॉकडाऊन या कोई भी प्रतिबंध लगाती है तो यह सरकार की जिम्मेदारी है की हर नागरिक को उन निर्बंधों से होनेवाले नुकसान का पूरा मुआवजा दे। पुणे में 1897 में ऐसा ही मुआवजा दिया गया है। आपत्ती निवारण कानून, 2005 के Section 12 और 13 में भी ऐसा प्रावधान है। जिसमें जहापर भी आपत्ती निवारण कानून लागू होता है उस समय तक सभी पिड़ीत नागरिकों को नुकसान भरपाई का प्रावधान और बँकों की किश्ते माफ करने का भी प्रावधान है।

इसलिए याचिकाकर्ता ने मांग की है की सरकार दो साल की सारे बैंकों की किश्ते माफ़ करे और सभी नागरिकों को उचित मुआवजा दे।

अमेरीका में सरकार ने स्पष्ट प्रावधान कर जिन लोगों की आमदनी कोरोना काल में कम हुई उन्हें मुआवजा और उनके घर का किराया तथा किराया ना भरनेपर उन्हें मकान खाली करने पर रोक आदि प्रावधान किये है।

[Pantelis Chrysafis, Et Al. Vs. Lawrence K. Marks 2021 SCC OnLine US SC 35]

जब मामला हाय कोर्ट में सुनवाई को आया तब चीफ जस्टीस ने 14.03.2022 को सरकार और सभी उत्तरवादियों को एक हफ्ते के अंदर शपथपत्र पर जबाब देने का आदेश दिया। सरकार के पास कई मुद्दों पर जबाब ही नही था। जब मामले की सुनवाई 22.03.2022 को हुई तब हाय कोर्ट ने सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए इस मामले की सारी फाइलें कोर्ट में पेश करने को कहा और दूसरे दिन 2:30 को मामला सुनवाई के लिए रखा। तब सरकार ने घबराकर कोरोना के सारे निर्बंध वापस लेने के लिए 9 दिन यानी 31st मार्च तक का समय मांगा।

कोर्ट ने बाकी मुद्दों पर सुनवाई जैसे लोगों से मास्क के नाम पर वसूला गया अवैध फ़ाईन लौटाना, दोषी मंत्री, अधिकारी, मुख्यमंत्री के खिलाफ सी.बी.आय. को F.I.R.  और जांच के आदेश, पीड़ित को 5 करोड़ का हर्जाना आदि विभिन्न मामलों पर सुनवाई के लिए 5 एप्रिल 2022 की तारीख तय की है।



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