जस्टिस चंद्रचूड़ के खिलाफ खुद के बेटे को अनुचित लाभ पहुंचाने के लिए भ्रष्टाचार और पद के दुरूपयोग का केस. एक और मामले मे राष्ट्रपती कार्यालय द्वारा चंद्रचूड़ के खिलाफ क्रिमीनल केस चलानेके लिए मिली मंजूरी.

  •  अपने बेटे के केस मे जाली दस्तावेज तयार कर गैरकानूनी आदेश पारीत करने और अदार पुनावाला, बिल गेट्स को हजारो करोड रूपये का गैरकानूनी लाभ पहुचाने के लिए पद का दुरूपयोग कर सुप्रीम कोर्ट के नियमो के खिलाफ काम करने के सारे सबूत और स्टिंग ऑपरेशन के साथ राष्ट्रपती,सीबीआय ,केन्द्रीय सतर्कता आयोग CBI, CVC के पास केस दर्ज.
  • गैरकानूनी आदेश की वजह से कई लोगो की मौत और जान खतरे में पड़ने सुप्रीम कोर्ट के साथ धोखादड़ी करने की वजह से जस्टिस चंद्रचूड़ पर IPC 115,302,52,323, 336,109, 409,219,  218,192,193,199,200,201, 465.466 471,474,120(B)34 आदी धाराओ के तहत FIR दर्ज कर कारवाई की मांग कोर्ट अवमानना कानून 1971 की धारा  2(b)(c),12,16 के तहत भी कारवाई की मांग.
  • सुप्रीम कोर्ट और हाय कोर्ट लिटिजंटस एसोसिएशन के अध्यक्ष ने राष्ट्रपती के पास दर्ज किया केस.
  • जस्टिस चंद्रचूड़ द्वारा आरोपियो को मदद करने के लिए किये गये भ्रष्टाचार मे सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ के आदेशो का अवमान करने के सभी सबूत सोपे.
  • सुप्रीम कोर्ट की संपत्ति का दुरूपयोग आरोपीयो के फायदे के लिए करने के मामले मे IPC 409 की धारा मे जज को आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान.
  • सबूतो और संविधानिक प्रावधानों को जानबूझकर नाकरने और वैक्सीन मर्डर को प्रोत्साहन देने के मामले मे IPC 115,302, आदी धाराओ में फासी की सजा का प्रावधान.
  • देशभर से विभिन्न एक्टीव्हीस्ट, NGO, वकील संघ और जागरूक नागरिको ने CJI श्री उदय ललीत को पत्र लिखकर आरोपी की जांच कर जस्टीस चंद्चुद को CJI नहीं बनाने की और उन्हें जज की पद से तुरंत बर्खास्त करने की मांग की है.
  • सुप्रीम कोर्ट द्वारा तथ ‘इन-हाउस- प्रोसीजर’ मे जस्टीस चंद्रचूड़ से सारे कोर्ट केसेस के काम निकालने का अधिकार मुख्य न्यायमूर्ति उदय ललित को प्राप्त है.
  • सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ के आदेशों को जानबूझकर न मानने और उन आदेशो के खिलाफ काम करने तथा गैरकानूनी आदेश पारीत करने की जस्टिस कर्णन मामले में बनाये कानून (2017) 7 SCC 1 मे दिए निर्देशों की वहज से जस्टिस चंद्रचूड़ को कोर्ट अवमानना कानून 1971 की धारा 2 (b), 12, 16 और संविधान के आर्टिकल 129 के तहत ६ माह जेल (6 months imprisonment) की सजा हो सकती है.
  • अव्हेकन इंडिया मुव्हमेंट (AIM) इंडियन बार एसोसिएशन (IBA) आदी अनेक संगठनो द्वारा देशभर  मे  आंदोलन की तैयारी
  • कई प्रमुख हिंदू मुस्लिम एस.सी. एस. टी, किसान,साधु-संतो के संगठनो का याचिकाकर्ता को मिला समर्थन

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के विद्वान और विवादास्पद जज डॉ. धनंजय चंद्रचूड़ द्वारा आरोपियों को और अपने बेटे अँड. अभिनव चंद्रचूड़ को गैरकानूनी लाभ पहुंचाने के लिए किया गया भ्रष्टाचार और पद का दुरूपयोग करने के कई मामलों के साबुत और स्टिंग ऑपरेशन की सीडी की साथ सुप्रीम कोर्ट अँड. हाय कोर्ट लिटिजंटस एसोसिएशन' के अध्यक्ष द्वारा राष्ट्रपति के पास केस दर्ज कर दिया गया है (Case No. PRSEC/E/2022/30960)

इस केस की जह से जस्टिस चंद्रचूड़ का चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बनने का सपना खतरे मे पड़ गया है

देशभर के कई NGO संगठनों, वकीलो ने इस मामले की जांच कर तुरंत कारवाई की मांग की है.

इस मामले मे विस्तृत समाचार निम्रप्रकार है:

1. आरोप क्र.1 #: - अपने बेटे के मुवक्किल (Client) को Extortion (फिरौती) करने के लिए उस केस को सुनने के लिए आपत्र होते हुए भी केस सुनकर और जो आवेदन कोर्ट के रिकॉर्ड पर ही नहीं है उसके बारे मे आदेश पारीत करना, (IPC 52, 109, 166, 385, 219, 218, 201, 202, 192, 193,471, 474, 120(B), 34 & Contempt of courts act 1971 Section2 (c), 128 16]

1.1. पुणे की एक बैंक के करीब ३०० करोड़ के फ्रॉड मामले मे कई केसस मुंबई हाय कोर्ट मे प्रलंबित है. (W. P. Crl No. 3093/2021, 4134 of 2019. & various connected petition)

1.2. उस मामले में एक आरोपी की ओर से जस्टिस चंद्रचूड़ के  बेटे अभिनव चंद्रचूड़ पैरवी कर रहे थे.

1.3. इसी मामले में अन्य याचिकाकर्ताओ पर दबाव बनाकर उनसे फिरौती वसूलने के लिए जस्टिस चंद्रचूड़ की बेंच के सामने एक याचिक दायर की गई (SLP Crl. No. 5703 of 2020)

1.4. सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाये गए नियम Judges Ethics Code और संविधान पीठ की आदेशो मे यह स्पष्ट कानून बनाया गया है की जिस केस में जज का बेटा या परिवार का कोई भी व्यक्ति सम्बन्ध रखता है तो वह  उस केस की सुनवाई नहीं कर सकता उसे तुरंत उस केस से हट जाना चाइए। इस नियम का पालन सभी इमानदर जज हमेशा से करते रहे हैं

1.5. किन्तु जस्टिस चंद्रचूड़ ने खुद को उस केस अलग नही किया और विरोधी पक्ष के वकीलों को सुनने से  पहले ही सीधे याचिका मंजूर कर दी

1.6. जस्टिस चंद्रचूड़ ने  उस मामले अपने दि. 29.11.2021 in SLP (Cri) No. 9131 of 2021 in Anita Chavan Vs. State के आदेश में लिखा की महाराष्ट्र सरकार द्वारा अर्जी पर महीने के भीतर सुनवाई हो

Link:https://drive.google.com/file/d/1L9X1KliI47IdiYgQDKzpDTa9SJQoY_wT/view?usp=sharing

1.7. मजे की बात यह है की ऐसी कोई अर्जी महाराष्ट्र सरकार  ने कभी कोर्ट में लगाई ही नहीं गई है।  और तो और , जस्टीस चंद्रचूड़ ने अपना आदेश पारित करते समय महाराष्ट्र सरकार के वकील का क्या कहना है यह बात ना अपने आदेश में लिखी ना उन्हें सुना।

इसके आलावा  जो विभिन्न करीब २० याचिकाकर्ता मुंबई हायकोर्ट में थे उन्हें भी ना नोटीस जारी किया गया और ना सुना गया. तथा उनकी अनुपस्थीती में एकतर्फा गैरकानूनी आदेश उनके ही खिलाफ पारीत कर अपने बेटे के मुवक्किल के फिरौती  ग्रुप को अनुचित लाभ पहुँचाने का प्रयास किया गया.

1.8. यह सारा खेल केवल अन्य याचिकाकर्ताओं पर दबाव बनाकर उन्हें जस्टीस चंद्रचूड़ साथ में होने और सुप्रीम कोर्ट से कैसे भी आदेश पारीत कर सकने का पावर का एहसास कराकर उनसे फिरौती वसूलने के उद्देश्य को अंजाम देने के लिए रचा गया.

1.9. सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे ही एक मामले में आरोपीयों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के साथ धोखाधड़ी के आरोप में याचिकाकर्ता और उनके साथ इस आपराधिक साजिश में शामिल सरकारी अधिकारियो के खिलाफ सीबीआय जाच और FIR के आदेश दिए थे और कठोर करवाई की थी (Sanjeev Kumar Mittal Vs. The State 2011 (121) DRJ 328)

1.10. अपनी इस करतूत की वजह से जस्टिस चंद्रचूड IPC 52,166, 109, 385, 219, 192,193,471, 474, 120 (B), 34, 218, 201, 202,409 आदी विभीन्न धाराओ के तहत सजा के हक़दार है साधमे कोर्ट अवमानना कानून 1971 की धरा 2(b) (c), 12, 16 तथा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 129, 142 के तहत भी सजा के हकदार है.

1.11. साथमे सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ के K. Veeraswami Vs. Union of India and Ors, (1991) 3 SCC 655 और Additional District and Sessions Judge 'X' Vs. Registrar General, High Court of Madhya Pradesh (2015)4 SCC 91 द्वारा निर्धारित मामले के निर्देशनुसार तथा सुप्रीम कोर्ट 'IN-HOUSE-PROCEDURE' के तहत मा. चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया और मा. राष्ट्रपति को यह अधिकार है की वे जस्टिस चंद्रचूड़ को जज के पद से त्यागपत्र देने के लीये मनायें और ऐसा ना करने पर उनके सारे काम निकालले और उनके खिलाफ महाभियोग चलाने का प्रस्ताव राज्यसभा को भेजे. इसके साथ ही राष्ट्रपतिजी के निर्देशनुसार सीबीआय CBI आरोपी जज चंद्रचूड़ और अन्य के खिलाफ FIR दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार करने और आरोपपत्र दाखिल करने की कारवाई कि जा सकती है।

ऐसी ही कारवाई दिल्ली हायकोर्ट के जज शमीत मुखर्जी 2003-DRJ-70-327 (पंजाब & हरीयाणा हायकोर्ट की जज निर्मल यादव (2011)4 RCR (Cri) 809 समेत कई जजेस के खिलाफ की गई है. उसकी समस्त जानकारी 'इंडियन बार असोसिएशन’ IBA की वेबसाइट पर उपलब्ध है:

Link : https://indianbarassociation.in/

2. आरोप क्र. २ फार्मा माफिया अदार पुनावाला और अन्य को हजारों करोड़ का अनुचित का लाभ पहुंचाने के लिए कानून के खिलाफ जाकर संविधान पीठ के आदेशों की अवमानना कर गैरकानूनी आदेश पारीत कर देश की और जनता की हजारो करोड़ की संपत्ती का नुकसान करवाकर करोड़ो लोगों के मुलभुत संवैधानिक अधिकारों का हनन करना और डॉक्टर्स तथा विशेषज्ञों की सलाह ठुकराकर लोगो की  जान को धोखे में डालकर जनसंहार लोगो की के गुनाह को बढ़ावा देना। [IPC- 52, 166, 115, 201, 208, 219, 302, 323, 336, 191, 192, 193, 466, 471, 474, 511, 120(B), 34 etc. of IPC]

[Sec. 2(b)(c), 12, 16 of Contempt of Courts Act, 1971 R / w Article 129, 142 of the Constitution of India.]

2.1. सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ ने जिसमे खुद जस्टीस चंद्रचूड़ भी एक सदस्य थे Common Cause Vs. Union of India (2018) 5 SCC 1मामले में स्पष्ट कानून बना दिया है की किसी भी व्यक्ती को भारतीय संविधान के अनुच्छेद २१ में यह अधिकार प्राप्त है की वह कोई भी इलाज, दवाई, वैक्सीन (Treatment) लेने से मना कर सकता है और देश का कोई भी कानून या अधिकारी उसे उसके वैक्सीन नहीं लेने की वजह को बताने के लिए न तो कोई सवाल पुछ सकता है ना ही दबाव बना सकता है.

2.2. इस बारे में हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने Jacob Puliyel Vs. Union of India 2022 SCC Online SC 533 मामले में भी स्पष्ट कानून बनाकर कोविड़ वैक्सीन न लगाने वाले नागरिको पर ट्रेन में सफर से लेकर अन्य जगहों पर लगाये गये प्रतिबंध को असवैधानिक करार दिया है.

2.3. किंतू जस्टीस चंद्रचूड़ ने इन सभी कानून का और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन रोकने के लिए दायर याचिकाकर्ताओं की पाचिकाओं को खारीज कर गुन्हाओं को रोकने और अधिकारों की रक्षा करने के सुप्रीम कोर्ट के जज के कर्तव्य और पद की शपथ का उल्लंघन किया।

2.4. कई मामलो में उन्होंने पिडीत नागरिको को राहत देने के बजाय उनपर वैक्सीन लेने की जबरदस्ती की. कई गैरकानूनी आदेश पारीत किये। टीकाकरण नीती क़ानूनी प्रावधान के साथ डॉक्टर, विशेषज्ञों, WHO और खुद भारत सरकार ने भी यह स्पष्ट किया था की कोरोना वैक्सीन यह केवल Experimental Clinical Trial के दौर में है और इस के कई जानलेवा दुष्परीणाम हो सकते है इसलिए हर व्यक्ती को सभी दुष्परीणाम बताकर उसकी मर्जी से ही उसे टीका दिया जाए। जिन लोगो को अनाज (Food) या अन्य दवाई की अॅलर्जी है उन्हें टीका न दिया जाये जिन लोगो को एक बार कोरोना हो चुका है वे सबसे सुरक्षित है क्योंकि Natural immunity यह वैक्सीन से 2700 गुना ज्यादा बेहतर है और आजीवन कारागर तथा प्रभावी रहती है जबकी वैक्सीन से सुरक्षा की कोई गॅरंटी नहीं है और उसकी इम्युनीटी केवल ३ माह तक ही रहती है।

2.5.  युरोप के 21 देशो ने 'कोव्हीशील्ड वैक्सीन के दुष्परिणामों से मौत होने की वजह से उस वैक्सीन के इस्तमाल पर पाबंदी लगा दी है.

2.6 भारत सरकार की AEFI कमीटी ने भी माना की डॉ. स्नेहल लुणावत समेत कई लोगों की मौत कोव्हीड वैक्सीन के दुष्परीणामों की वजह से हुई है। इस मामले में बॉम्बे हाय कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट और केरला हायकोर्ट ने भी पिडितो को मुआवजा देने के मामले में सरकार और वैक्सीन निर्माता कंपनी के मालिक अदार पूणावाला, बिल गेट्स, केन्द्र सरकार आदी सभी को नोटीस जारी किया है.

[Link: https://indianbarassociation.in/bill-gates-adar-poonawallas-game-over/

2.7. किंतू जस्टीस चंद्रचूड इन सभी बातो को छुपाकर मुख्य आरोपीयो को बचाने और फार्मा कंपनीयों को हजारों करोड़ का अनुचित लाभ पहुचाने तथा  देश के जनता का हजारो करोड़ रूपये का अनुचित गबन/ नुकसान करवाने के दुष्ट उद्देश से वैक्सीन की जबरदस्ती के गैरकानूनी आदेश के खिलाफ की कई याचिकाओं को सुनने तक से मना कर दिया या फिर बिना किसी आदेश देकर केवल दो लाईन के गैरकानूनी आदेश से खारीज कर दिया।

और तो और जस्टीस चंन्द्रचुड ने सुप्रीम कोर्ट के जज की कुर्सी पर बैठकर याचिकाकर्ताओं को वैक्सीन लेने की सलाह दी और उन पर दबाव बनाया।

2.8. उनके इस कदम से आरोपी अधिकारी और फार्मा माफियाओ के गुनाहो में तेजी आई और उन्होंने गरीब मासूम जनता पर जुल्म अत्याचार करके उन्हें जबरदस्ती वैक्सीन लेने पर मजबूर किया जिसकी वजह से कई मौते हुई है।

2.9. इसके अलावा कई वैक्सीन लेने वाले लोग आज भी हार्ट अटैक (Micardits) से मर रहे है जो की Vaccine का दुष्परिणाम (Side Effects) है ऐसा विशेषज्ञों ने अपने रिसर्च में पाया है और इस बारे में 'शोध पत्र (Research Paper) प्रकाशित किये है.

Link:

i.https://community.covidvaccineinjuries.com/compilation-peer-reviewed-medical-papers-of-covid-vaccine-injuries/

ii. https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC8863574/

iii. https://pubmed.ncbi.nlm.nih.gov/34710832/

2.10. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कानून बनाया है कि अगर कोई भी सरकारी अधिकारी, जज या पुलिस अगर किसी पीड़ित की शिकायत पर आरोपीयों पर करवाई करने में आनाकानी करता है करता है या अपनी हरकतों से गुनाह रोकने में असमर्थ होता है या गुनाह करने को प्रोत्साहित करता है तो ऐसा जज, पुलिस और सरकारी अधिकारी ये IPC 166, 218, 219, 201, 202 इन धाराओं के अलावा 120(B), 34, 109, 511, 52 के तहत मुख्य आरोपी और साजिशकर्ता के इतनी ही सजा के हकदार होंगे।

[State of Odisha Vs. Pratima Mohanty 2021 SCC Online SC 1222, Raman Lal Vs. State of Rajasthan 2000 SCC Online Raj 226, In Re. M.P.Dwivedi (1996) 4 SCC 152, K, Rama Reddy Vs. State 1998 (3) ALD 305, Biraja Prosad Rao Vs. Nagendra Nath, (1985) 1 Crimes 446 (Ori.), Hurdut Surma, (1967) 8 WR (Cr.) 68, Narapareddi Seshareddi, In Re, AIR 1938 Mad 595,Rakesh Kumar Chhabra Vs. State of H.P., 2012 Cru 354(HP), Moti Ram Vs. Emperor, AIR 1925 Lah 461, Maulud Ahmad Vs. State of U.P.,(1964) 2 CrLJ 71 (SC), Girdhari Lal, (1886) 8 All 633].

3. सभी की निगाहें मा. राष्ट्रपती कार्यालय और मा. चीफ जस्टीस ऑफ इंडिया की ओर लगी हुई है.

आप माननीय राष्ट्रपति के समक्ष पंजीकृत न्यायमूर्ति श्री डी. वाई चंद्रचूड़ के विरुद्ध दिनांक 05.10.2022 को दर्ज शिकायत की प्रति डाउनलोड कर सकते हैं। क्लीक करे

भारत के माननीय मुख्य न्यायाधीश श्री उदय ललितजी को संबोधित 6 अक्टूबर 2022 के आवेदन (Representation) की प्रति डाउनलोड कर सकते हैं। क्लीक करे 

Comments

  1. Modi Government is afraid of Justice Chandrachud's honesty, integrity and sincerity as a justice hence this humbug is being done with an ulterior motive.

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  2. It means all these facts are wrong

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